एनयूजे ने उठायी मांग-
*लंबित विज्ञापन बिलों का भुगतान करें या राहत पैकेज दें*
देहरादून। नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (एनयूजे उत्तराखंड) ने सरकार से लघु एवं मझोले समाचार पत्रों के लंबित बिलों का अविलंब भुगतान करने अथवा उन्हें कोरोना संकट काल में राहत पैकेज देने की मांग की है।
मुख्यमंत्री, सचिव सूचना और महानिदेशक सूचना एवं लोक संपर्क विभाग को पत्थर में यूनियन ने कहा है कि सूचना एवं लोक संपर्क विभाग उत्तराखण्ड में वित्तीय वर्ष 2019-20 से संबंधित लघु एवं मझोले समाचार पत्रों के बिल बड़ी संख्या में लंबित पड़े हुये हैं। पहले कर्मचारियों की हड़ताल के कारण बिलों का भुगतान नहीं हो पाया, उसके बाद कोरोना और लाक डालन के कारण कार्यालय बंद कर दिये गये। जिससे लघु एवं मझोले समाचार पत्रों से जुड़े मीडियाकर्मी गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। पत्थर में कहा गया है कि नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स द्वारा मा0 मुख्यमंत्री एवं सचिव (सूचना) सहित महानिदेशक सूचना को ईमेल द्वारा प्रेषित पत्रांक- एन0यू0जे0/हरि0/2020/012-014 दिनांक 26-03-2020 के माध्यम से लघु एवं मझोले समाचार पत्रों के लंबित बिलों का अविलंब भुगतान कराने के लिए अनुरोध किया गया था। लेकिन लघु और मझौले समाचार पत्रों की अनदेखी करते हुए आज तक लंबित भुगतान न कर उनके परिवारों को भुखमरी के कगार पर पहुंचा दिया गया है। जबकि इस श्रेणी के सामाचार पत्रों को कोरोना संबंधी विज्ञापनों से भी वंचित कर बड़े मीडिया घरानों के अखबारों और टीवी चैनलों को करोड़ों के मनमाने विज्ञापन दिये गये हैं।
आरोप लगाया गया है कि सूचना एवं लोक संपर्क विभाग को आवश्यक कार्यों के निस्तारण के लिए व्यापक जनहित में 50 प्रतिशत स्टाफ को रोस्टर के अनुसार या जिस अनुभाग/अधिकारी/कर्मचारी से कार्य करवाना था उनसे कार्यालय या घर से कार्य करवाया जाना चाहिये था, वह कार्य विभाग द्वारा नहीं किया गया। यूनियन ने कहा है कि यह भी जानकारी में आया है कि जिस बजट से लंबित बिलों का भुगतान किया जाना चाहिये था वह करोड़ों का बजट वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर सूचना विभाग द्वारा सरेंडर कर दिया गया है। जबकि कई विभाग इसमें 30 जून तक का क्लोजिंग लक्ष्य ले कर चल रहे हैं। नेशनलिस्ट यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने सवाल उठाया है कि जब विभाग की देनदारियां खड़ी हैं तो समाचार पत्र पत्रिकाओं का लंबित भुगतान क्यों नहीं किया गया ? अगर बजट सरेंडर करने के लिए कार्यालयी कार्य हो सकता है तो लघु एवं मझोले समाचार पत्रों के भुगतान के लिये कार्यालयी कार्य क्यों नहीं किये गये? राज्य का सूचना एवं लोक सपंर्क जैसा महत्वपूर्ण विभाग पूरी तरह क्यों बंद रखा गया? जिससे अति आवश्यक कार्यों से वहॉं आने वाले मीडियाकर्मियों को वापिस लौटना पड़ा है।
यूनियन ने महानिदेशक सूचना से मांग की है
कि इस मामले में व्यक्तिगत संज्ञान लेकर लघु एवं मझोले समाचार पत्रों के लिए तत्काल वित्तीय व्यवस्था कर उनके लंबित बिलों के अविलंब भुगतान या आर्थिक राहत पैकेज की व्यवस्था करवायें। जिससे समाचार पत्र पत्रिकाओं से जुड़े परिवार कोरोना काल के आर्थिक संकट से उबर सकें।