उत्तराखंड में हरेला पर्व पर वृक्षारोपण की मुहिम
*एमडीडीए उपाध्यक्ष रणवीर सिंह चौहान ने चलाया वृहद वृक्षारोपण अभियान
*राजधानी के सिटी पार्क में लगाएं 500 पौधे
*एमडीडीए वीसी रणबीर सिंह चौहान, सचिव जीसी गुणवंत ,सचिव सुंदर सेमवाल,ज्वाइंट सेक्रेट्री मीनाक्षी पटवाल ,हर गिरी ,एवं उद्यान अधिकारी ए आर जोशी , संजीवन सुठा ,उस्मान अली ,सुषमा अरोड़ा सहित सैकड़ों कर्मचारी अधिकारी रहे मौजूद
देहरादून-उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण को संस्कृति से जोड़ने के लिए पारंपरिक पर्व हरेला को आज अभियान के रूप में मनाया गया । देहरादून के सिटी पार्क में एमडीडीए ने बृहत् अभियान चलाकर 500 पौधों का वृक्ष रोपण किया। एमडीएनए नवनिर्मित सिटी पार्क में एक सीरीज में पौधे लगाएं जिसमें कुछ छायादार वृक्ष थे और कुछ फल फूलों के पौधे थे ।एक लाइन में एक वैरायटी के पौधे और दूसरे लाइन में दूसरे वैरायटी के पौधे को लगाया गया ।सीरीज में पौधा लगाने से भविष्य में एमडीडीए सिटीपार्क विकसित होने पर यह सीरीज बहुत ही खूबसूरत दिखेगा ऐसा प्रयास किया गया*
एमडीडीए के उपाध्यक्ष रणबीर सिंह चौहान ने कहा कि हरेला परंपरागत पर्व है यह हमारे संस्कार परंपरा और पर्यावरण के प्रति हमारे दायित्व को दर्शाता है ।हरियाली के महत्व को हर कोई समझता है।
उन्होंने कहा कि प्रकृति के चक्र को मजबूत बनाने ,जल जमीन जंगल स्वास्थ्य को बचाने के लिए हम पेड़ों का महत्व समझते हैं इसलिए हमारे बुजुर्गों ने ऐसे पर्व मनाने की परंपरा शुरू की थी । हरेला पर संकल्प लेना चाहिए की सभी को कम से कम एक पौधा जरूर लगाना चाहिए इसी क्रम में एमडीडीए ने भी देहरादून के सिटी पार्क में आज 500 पौधे लगाए हैं।
*मौके पर मौजूद मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण के सचिव जीसी गुणवंत ने बताया कि प्रकृति पूजन का प्रतीक हरेला लोक पर्व गुरुवार को मनाया जा रहा है हरेले से ही सावन मास और वर्षा ऋतु का आरंभ माना जाता है हरेला के तिनकों को इष्ट देव को अर्पित कर अच्छे धन-धान्य दुधारू जानवरों की रक्षा और परिवार व मित्रों की कुशलता की कामना की जाती है। हरेले की पहली शाम देखकर पूजन की परंपरा भी निभाई जाती है। 5 -7 अनाजों को मिलाकर हरेले से 9 दिन पहले दो बर्तनों में उसे बोया जाता है जिसे मंदिर के कक्ष में रखा जाता है इस दौरान हरेले को जरूरत के अनुरूप पानी दिया जाता है 2 से 3 दिन में हरेला अंकुरित होने लगता है सूर्य की सीधी रोशनी से दूर होने के कारण हरेला यानी अनाज की पत्तियों का रंग पीला होता है*।
*एमडीडीए के उद्यान अधिकारी ए आर जोशी ने बताया कि यह हमारा पारंपरिक त्यौहार भी है और इससे* *वृक्षारोपण कर प्रकृति के क्षेत्र में भी अच्छा काम किया जा सकता है यह
मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण का प्रयास है जो आगे भी चलता रहेगा जिस पौधे को विभाग ने लगाया है उसकी जिम्मेदारी विभाग के अधिकारी समय-समय पर आकर पौधे की साफ-सफाई और सुरक्षा के उपाय भी देखेंगे का प्रयास करेंगे ।
वृक्षारोपण अभियान में एमडीडीए के सचिव सुंदर सेमवाल ने बताया कि हरेला पर्व पर मिट्टी से बनते हैं डेकर यानी कि हर काली पूजन होता है घर के आंगन में शुद्ध मिट्टी लेकर शिव, पार्वती, गणेश -कार्तिकेय आदि की छोटी मूर्तियां तैयार की जाती है । उन्हें रंगने के साथ बकायदा सिंगार भी किया जाता है । संस्कृति कर्मी इसे उत्तराखंड का एक अनूठा पर्व भी मानते है । बेकरी बनाने का उत्साह गजब का होता है बच्चों को उत्सुकता के साथ मूर्तियां बनाने लगते हैं* ।
*हरेले के सामने शिव पार्वती का पूजन कर धनधान्य की कामना की जाती है हर काली पूजन में हुए प्रसाद फल आदि का भोग लगाया जाता है* ।
*पहले सामूहिक रुप से डेकर पूजन की परंपरा रही है मोहल्ले और गांव के लोग एक साथ देकर पूजन करते थे बाद में प्रतीकात्मक रूप से घरों में पूजन किया जाने लगा है*।
आशीर्वचन के बोल अद्भुत है:—– आशीर्वचन के बोल हरेला पूजन के समय आशीष देने की परंपरा है इसके बोल काफी समृद्ध था और व्यापकता लिए हुए हैं परिवार के बुजुर्ग से इसे सुनने वाले छोटे बच्चे कई दिनों तक इन्हें गुनगुनाते रहते हैं । उत्तराखंड में लोग पहाड़ों से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाले बच्चे कुमाऊनी गढ़वाली भाषा बोलने में संकोच करते हैं माता-पिता को घर में अपनी बोली भाषा में बात करनी चाहिए और बच्चों को भी अपनी मातृभाषा का ज्ञान जरूर होना चाहिए ।
बताते चलें कि हरियाली के पर्व हरेला के मौके पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पहले ही पौधारोपण का की शुरुआत कर दी थी राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने राजभवन और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने आवास से हरेला अभियान की शुरुआत की पहले मुख्यमंत्री ने अपने सरकारी आवास पर पौधा लगाया इसके बाद नालापानी क्षेत्र में पौधारोपण किया हरेला पर्व पर वन विभाग वन मे 7,50,000 पौधे लगाएगा जबकि करीब ढाई लाख पौधा उद्यान विभाग की ओर से लगाए जाएंगे यह अभियान बृहस्पतिवार आज से शुरू हो गया है और यह अभियान 15 अगस्त तक चलेगा।
उत्तराखंड में पहाड़ के जानकारों की मानें तो हरेला सिर्फ एक त्यौहार ना होकर उत्तराखंड की जीवन शैली का प्रतिबिंब है यह प्रकृति के साथ संतुलन साधने वाला त्यौहार है । प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन हमेशा से पहाड़ की परंपरा का अहम हिस्सा है। हरियाली इंसान को खुशी प्रदान करती है ,हरियाली देखकर इंसान का तन मन प्रफुल्लित हो जाता है इस त्यौहार में व्यक्तिवादी मूल्यों की जगह समाजवादी मूल्यों को वरीयता दी गई है। हरेला के त्यौहार में लोग अपने घर में हरेले समृद्धि को अपने तक ही सीमित न रखकर उसे दूसरों को भी बांटते हैं। यह विशुद्ध रूप से सामाजिक सद्भाव और प्रेम की अवधारणा है । हरेला के त्यौहार में भौतिकवादी चीजों की जगह मानवीय गुणों को वरीयता दी गई है। मानवीय गुण हमेशा इंसान के साथ रहते हैं जबकि भौतिकवादी चीजें नष्ट हो जाती है जहां आज प्राकृतिक और मानव को परस्पर विरोधी के तौर पर देखा जाता है वही हरेला का त्यौहार मानव को प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाने की सीख देता है।
हरेला पर्व हरियाली और जीवन को बचाने का संदेश देता है हरियाली बचाने से जीवन भी बचा रहेगा इस प्रकार यह पर प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन को खासा अहमियत देती है हरेला पारंपरिक एकजुटता का पर्व है संयुक्त परिवार चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों ना हो उस में हरेला एक ही जगह बोया जाता है । आसपास और रिश्तेदारों के साथ ही परिवार के हर सदस्य चाहे वह घर से कितना भी दूर क्यों ना हो हरेला भेजा जाता है
यह अत्यंत संयुक्त परिवार की व्यवस्था पर जोर देता है संपत्ति के बंटवारे और विभाजन के बाद ही एक घर में दो भाई अलग-अलग हो सकते हैं उससे पहले अलग-अलग एक ही घर में हरेला नहीं बोया जा सकता।