वाशिंगटन, कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में वैक्सीन एक अहम हथियार है। इस बीच पूरी दुनिया में कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज देने को लेकर अलग-अलग बहस चल रही है। अमेरिका इसको लेकर जल्द फैसला करने जा रहा है। अमेरिका में कोरोना के मामलों के बीच बाइडन सरकार के सलाहकार शुक्रवार(17 सितंबर) को इस पर बहस करेंगे कि क्या इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि फाइजर की कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज सुरक्षित और प्रभावी है। इसे यह तय करने की दिशा में पहला सार्वजनिक कदम माना जा रहा है कि किन अमेरिकियों को अतिरिक्त(बूस्टर) डोज मिल सकती है और कब। अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने बुधवार को बहुत सारे सबूत पोस्ट किए कि वह शुक्रवार की बैठक में विशेषज्ञों से इस पर विचार करने के लिए कहेगा।
अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन बूस्टर डोज के डाटा की समीक्षा करने और बूस्टर डोज के औचित्य पर चर्चा करने में तटस्थ बना हुआ है। यहां उल्लेखनीय है कि व्हाइट हाउस के अधिकारी अमेरिका एक बूस्टर डोज अभियान का पूर्वावलोकन कर रहे हैं जिसके अगले सप्ताह शुरू होने की उम्मीद है। फाइजर कंपनी यह तर्क दे रही है कि जहां अमेरिका में गंभीर बीमारी से बचाव मजबूत है वहीं दूसरी डोज के छह से आठ महीने बाद मामूली संक्रमण के खिलाफ प्रतिरक्षा कहीं कम हो जाती है। दवा निर्माता इज़राइल के डेटा की ओर इशारा कर रहा है, जिसने गर्मियों में बूस्टर डोज देने की शुरुआत की थी।
अमेरिका पहले से ही गंभीर रूप से कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को फाइजर या माडर्ना वैक्सीन की एक अतिरिक्त खुराक प्रदान करता है।
समय के साथ कम हो जाती है माडर्ना वैक्सीन से कोरोना के खिलाफ सुरक्षा
माडर्ना की कोरोना वैक्सीन को लेकर एक नया अध्ययन सामने आया है। इसमें पाया गया है कि वैक्सीन से मिलने वाली कोरोना के खिलाफ सुरक्षा समय के साथ कम हो जाती है। इसलिए बूस्टर डोज की जरूरत की बात कही गई है। कोरोना के खिलाफ वैक्सीन सबसे बड़ा हथियार है। कोरोना वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा कितने समय तक रहती है इसको लेकर दुनिय़ाभर में बहस जारी है। इस बीच माडर्ना ने कहा है कि उसकी वैक्सीन का प्रभाव समय के साथ कम हो जाता है ऐसे में बूस्टर डोज की जरूरत है।
6 महीने में कम हो जाता है फाइजर वैक्सीन का प्रभाव
कोरोना वैक्सीन फाइजर को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि फाइजर वैक्सीवन की खुराक लेने के 6 महीने बाद ही लोगों में 80 फीसदी कम एंटीबॉडी मिली है। इस बात का खुलासा अमेरिका के वेस्टर्न रिजर्व यूनिसर्विटी और ब्राउन यूनिवर्सिटी द्वारा की गई स्टडी में खुलासा हुआ है। दोनों यूनिवर्सिटी द्वारा नर्सिंग होम के 120 निवासियों और 92 स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों के खून के सैंपल लेकर उनका परीक्षण किया गया। शोधकर्ताओं ने इंसान के अंदर ह्रमूोरलर इम्युनिटी को चेक किया। इसे एंटीबाडी मध्यस्थता प्रतिरक्षा भी कहा जाता है।