प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन के अनुरूप नए कलेवर में निखर रही केदारपुरी को प्लास्टिक फ्री जोन बनाया जाएगा। सरकार ने इसके लिए कसरत शुरू कर दी है। प्लास्टिक कचरा प्रबंधन को वहां ठोस कदम तो उठाए ही जाएंगे, केदारपुरी को प्लास्टिक की बोतलों से निजात दिलाने के मद्देनजर श्रद्धालुओं को तांबे की बोतलें उपलब्ध कराई जाएंगी। इनके डिजाइन और लागत के सिलसिले में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) से संपर्क साधा जा रहा है। बोतलों का निर्माण अल्मोड़ा और बागेश्वर के ताम्र शिल्पियों से कराया जाएगा।
जून 2013 की आपदा में तबाह हुई केदारपुरी का पुननिर्माण प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है। केदारपुरी में प्रथम चरण के पुनर्निर्माण कार्य पूर्ण हो चुके हैं और द्वितीय चरण के चल रहे हैं। इन कार्यों की बदौलत केदारपुरी नए कलेवर में निखर चुकी है और श्रद्धालुओं के अधिक आकर्षण का केंद्र बनी है। केदारनाथ में श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या इसका उदाहरण है। यही नहीं, प्रधानमंत्री ने सिंगल यूज प्लास्टिक के निस्तारण की मुहिम भी शुरू की है। यह केदारपुरी में भी आकार लेगी।
केदारपुरी को प्लास्टिक फ्री जोन बनाने के लिए वहां प्लास्टिक को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाएगा। इस कड़ी में श्रद्धालुओं को जागरूक करने के साथ ही प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन को कदम उठाए जाएंगे। सचिव पर्यटन दिलीप जावलकर के अनुसार इसकी कार्ययोजना तैयार की जा रही है। उन्होंने बताया कि आमतौर पर श्रद्धालु पीने के पानी के साथ ही केदारनाथ से मंदाकिनी व सरस्वती नदियों के संगम का पवित्र जल ले जाने के लिए प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग करते हैं। प्लास्टिक की बोतलों से धाम को मुक्त करने के लिए तांबे की बोतलों को महत्व देने की योजना है।
सचिव पर्यटन जावलकर ने बताया कि केदारनाथ धाम आने वाले श्रद्धालुओं को पानी के लिए तांबे की बोतलें उपलब्ध कराने की योजना है। प्रयास ये रहेगा कि ये रियायती दर पर श्रद्धालुओं को मिलें। इसी क्रम में तांबे की बोतलों के डिजाइन और लागत के सिलसिले में डीआरडीओ से संपर्क किया जा रहा है। बोतलों के निर्माण के लिए अल्मोड़ा व बागेश्वर के ताम्र शिल्पियों से बातचीत चल रही है। डिजाइन व लागत का विषय हल होने पर इनके माध्यम से ही बोतलें बनवाई जाएंगी, जिससे उन्हें रोजगार उपलब्ध होगा और श्रद्धालुओं को सुविधा।
सीवरेज सिस्टम भी हो रहा तैयार
सचिव पर्यटन के मुताबिक केदारपुरी में सीवरेज सिस्टम भी तैयार किया जा रहा है। इसमें उच्च हिमालयी क्षेत्रों में अपनाई जाने वाली तकनीक को अपनाया जा रहा है। इसके आकार लेने पर सीवरेज का भी निस्तारण हो सकेगा।