ऋषिकेश: घटना घटित होने से पहले क्यों नहीं सतर्क नज़र आता विभाग
जी हाँ यह बात सौ फीसदी सच व सही है जब कभी भी दुर्घटनाग्रस्त व कोई बड़ा हादसा होता है उसके बाद ही अक्सर संबंधित विभाग की तत्परता व मुस्तैदी दिखाई पड़ती है। लेकिन विभाग की यही तत्परता किसी भी घटनाक्रम से पूर्व दिखाई दे। तो अधिकतर दुर्घटनाग्रस्तों में जान माल के साथ साथ आर्थिक क्षति को भी कम करने के साथ साथ रोका भी जा सकता है। इस बात की बानगी देखने को मिली है पूर्व में वर्ष 2013 के केदार नाथ आपदा के दौरान। जिसमे सैकड़ों जिंदगी तबाह हो गयी थी। लेकिन संबंधित विभाग ने इसे महज एक प्राकृतिक आपदा कहकर दुर्घटना का स्वरूप बदल दिया। और लोग भी इसे दैवीय आपदा मानकर धीरे धीरे भुला भी बैठे। परंतु पूर्व के उस घटनाक्रम को वैज्ञानिक तरीके से देखें। तो जानकार इसे कही न कहीं वैज्ञानिक चूक भी मानते है। मसलन साफ है कि पूर्व के केदारनाथ आपदा को संवेदनशील घटनाक्रम मानकर संबंधित विभाग द्वारा कोई ठोस रणनीति बनाई गयी होती। तो आज चमोली जनपद के तपोवन में आपदा से हुए जनहानि के साथ साथ हज़ारों करोड़ की आर्थिक क्षति को कम किया जा सकता था। बाबजूद भी उत्तराखंड जल विद्युत निगम सबक सीखने को तैयार नहीं है। सूत्रों की माने तो ऋषीकेश के पशुलोक बैराज में 70 लाख की लागत से बनाये जा रहे कॉप्पर डैम का निर्माण भी खतरे के जद में आ गया है।
इस बात की पुष्टिनिगम के विद्युत यांत्रिक विभाग ने भी की है,बाबजूद भी विभाग इन आपत्ति पर रोक लगाने के बजाय निर्माण करते नज़र आ रही है। या फिर उत्तराखंड जल विद्द्युत निगम को यह बही भांति मालूम है कि इस कॉपर डैम पर होने वाले खर्च वर्ल्ड बैंक कर रही है।
और वल्ड बैंक का रुपया पानी में बहाने का इससे बढ़िया मौका और हो ही नहीं सकता। तभी विभाग अपने कॉन्ट्रैक्टर्स के साथ मिलकर मानकों के विरुद्ध कॉपर डैम को अंजाम देने में तुली हुई है। अब देखना है कि क्या उत्तराखंड जल विधुत निगम नींद से जागती है या नहीं। या फिर अवैध कॉपर डैम निर्माण कराकर किसी आपदा व हादसों को विभाग देता रहेगा खुली दावत।।