देहरादून। प्रदेश के जर्जर घोषित सरकारी विद्यालयों में किसी भी कमरे में भी यदि कक्षाएं संचालित की गईं तो विभाग सीधी कार्रवाई संबंधित विद्यालय के प्रधानाध्यापक/ प्रधानाचार्य पर करेगा। वर्षा काल प्रारंभ हो चुका है, ऐसे में छात्र-छात्राओं की सुरक्षा को देखते हुए समस्त मुख्य शिक्षा अधिकारियों से माध्यमिक शिक्षा निदेशक महावीर सिंह बिष्ट ने जर्जर भवनों की नवीन सूची तलब की है।
उन्होंने छात्रों की सुरक्षा पुख्ता करने को कहा है। 30 जून 2023 तक विभागीय रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में 2,785 सरकारी स्कूल भवन जर्जर हैं। वर्षा में इन स्कूलों के बच्चों की जान को खतरा बना रहा। यह हाल तब है, जब पूर्व में जर्जर स्कूल भवनों की वजह से कई हादसे हो चुके हैं।
विभाग का कहना है कि 2026 तक सभी स्कूलों को ठीक कर लिया जाएगा। प्रदेश सरकार की ओर से शिक्षा गुणवत्ता में सुधार के नाम पर न सिर्फ कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, बल्कि हर साल नए प्रयोग किए जा रहे हैं। इसके बावजूद वर्षा में तमाम स्कूल भवन जर्जर हैं। स्कूलों में मलबा आने, शौचालय की छत गिरने आदि की पूर्व में हुई घटनाओं में स्कूली बच्चे की जान चले गई थी।
जर्जर भवनों को लेकर भी तस्वीर साफ नहीं
शिक्षा विभाग के पास जर्जर स्कूल भवनों की सूची तो है, लेकिन यह रिकार्ड नहीं है। हर वर्ष समग्र शिक्षा के तहत मिलने वाले बजट से कितने स्कूलों में नए भवन बन गए हैं और पुराने जर्जर भवन में कक्षाएं संचालित नहीं की जाती। इन जर्जर भवन का इसलिए ध्वस्तीकरण नहीं हो पा रहा है, क्योंकि जिला प्रशासन की अनुमति इसके लिए जरूरी है। विभाग का दावा है कि किसी भी जर्जर भवन में कक्षाएं नहीं चलती, क्योंकि किसी स्कूल के सभी भवन जर्जर नहीं होते, बल्कि एक-दो कमरे जर्जर होते हैं, स्कूल के मुखिया को यह भी निर्देशित किया गया है कि इन जर्जर भवन के आसपास भी कोई छात्र न जाए।
शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में 1,437 प्राथमिक, 303 जूनियर हाईस्कूल और 1,045 माध्यमिक विद्यालय भवन आज भी जर्जर हैं। इसमें बागेश्वर जिले में 94, चमोली में 204, चंपावत में 123, देहरादून में 206, हरिद्वार में 170, नैनीताल में 160, पिथौरागढ़ में 193, रुद्रप्रयाग में 128, टिहरी गढ़वाल में 352, ऊधम सिंह नगर में 175 और उत्तरकाशी जिले में 185 स्कूल भवन जर्जर हाल हैं।