उत्तर प्रदेश में विभिन्न धार्मिक स्थलों से अभी तक करीब 50 हजार ध्वनि विस्तारक यंत्र यानी लाउडस्पीकर उतारे जा चुके हैं, जबकि 60 हजार से अधिक की आवाज कम करवा दी गई है। यह कदम महज बेवजह उन्मादी शोर के खिलाफ ही नहीं है, बल्कि धर्म-सम्मत और पर्यावरण संरक्षण के लिए अनिवार्य भी है। लाउडस्पीकर और डीजे जैसे ध्वनि विस्तारक यंत्र के कारण बीते कुछ वर्षो से उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश में भी कई जगह बवाल होते रहे हैं। अच्छा हुआ कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने इस समस्या को समझा है और अब वह अपनी प्रबल इच्छाशक्ति की बदौलत इसका निवारण कर रही है। बस अब सड़कों पर धार्मिक जुलूस के नाम पर या फिर विवाह या अन्य सामाजिक कार्यो की आड़ में कानफोड़ू गाने बजाने पर पाबंदी और लग जाए।
न जाने किसने महज 161 साल पुराने ध्वनि विस्तारक यंत्रों के साथ पूजा-अर्चना करने का रिवाज शुरू किया और देखते-देखते यह देश के हर गांव-कस्बे तक बीमारी की तरह फैल गया। देश के अलग-अलग हिस्सों से धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर लगाकर पूजा करने से भड़के तनावों के दंगों में बदलने की खबरें आती रहती हैं। ऐसे विवाद जान-माल का नुकसान तो करते ही हैं, बल्कि दशकों से साथ रहे लोगों के आपसी भरोसे में दरार ला देते हैं। असल में लाउडस्पीकर धर्म एवं आस्था की जोर आजमाइश का जरिया बनते हैं। हालांकि कागजों पर कानून में इस पर शोर करना गैरकानूनी है, लेकिन धर्म के नाम पर इसमें दखल देने से प्रशासन और सियासतदां, दोनों ही परहेज करते हैं। नतीजतन अजान और आरती के नाम पर टकराव तथा दंगों से मुल्क का सामाजिक ताना-बाना जर्जर हो रहा है।
पांच साल पहले मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने जीवन में शोर के दखल पर गंभीर फैसला सुनाया था। हाई कोर्ट के अनुसार त्योहार या सामाजिक कार्यक्रम के नाम पर अत्याधिक शोर मचाकर आम जनजीवन को प्रभावित करना अनुचित है। किसी के मकान या सड़क किनारे लाउडस्पीकर-डीजे आदि के शोर से न केवल मौलिक मानव अधिकार की क्षति होती है, बल्कि आसपास रहने वालों को बेहद परेशानी होती है, लेकिन उस आदेश पर सटीक अनुपालन हुआ नहीं। दुर्भाग्य है कि भले ही कानून कुछ भी कहता हो, अदालतें कड़े आदेश देती हों, लेकिन धर्म के कंधे पर सवार होकर शोर मचाने वाले लाउडस्पीकर हैं कि मानते ही नहीं। ये न केवल कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती बने हैं, बल्कि आम लोगों की सेहत और पर्यावरण के भी दुश्मन बने हुए हैं। सभी लोग इनसे तंग हैं, लेकिन चुनौती यही है कि इन पर कानून सम्मत कार्रवाई कौन तथा कैसे करे? धार्मिक जुलूस में लाउडस्पीकर या डीजे के इस्तेमाल के चलते गत तीन वर्षो के दौरान देशभर में 100 से ज्यादा जगह ¨हसक घटनाएं हो चुकी हैं। ये लाउडस्पीकर केवल दंगों के कारण ही नहीं बनते हैं, बल्कि उस आग में घी का काम भी करते हैं। छोटे से विवाद पर अपने समाज के लोगों को एकत्र करने, अफवाहें फैलाने, लोगों को उकसाने में भी इनकी भूमिका होती है।
सभी धर्म कोलाहल या अपने संदेश को जबरिया लोगों तक पुहंचाने के विरुद्ध हैं। साफ है धार्मिक अनुष्ठान में ध्वनि विस्तारक यंत्रों की अनिवार्यता की बात करना धर्म-संगत नहीं है। कुरान में लिखा है-‘तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए और हमारा धर्म हमारे लिए।’ यानी यदि कोई शख्स दूसरे धर्म में यकीन करता है तो उसे जबरन अपने धर्म के बारे में न बताएं, लेकिन जब हम लाउडस्पीकर पर अजान देते हैं या तरावी पढ़ते हैं तो क्या दूसरे धर्मावलंबियों को जबरन अपनी बातें नहीं सुनाते? इसी तरह गीता रहस्य के 18वें अध्याय के 67-68वें श्लोक में कहा गया है-‘गीता के रहस्य को ऐसे व्यक्ति के समक्ष प्रस्तुत नहीं करना चाहिए जिसके पास इसे सुनने का या तो धैर्य न हो या जो किसी स्वार्थ-विशेष के चलते इसके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट कर रहा है या जो इसे सुनने को तैयार नहीं है।’ जाहिर है लाउडस्पीकर से हम ये स्वर उन तक भी बलात पहुंचाते हैं, जो इसके प्रति अनुराग नहीं रखते।
यह त्रसदी है कि जहां अभी कुछ दशक पहले तक सुबह आंखें खुलने पर पक्षियों का कलरव हमारे कानों में मधु घोलता था, वहीं आज देश की बड़ी आबादी अनमने मन से धार्मिक स्थलों के बेतरतीब शोर के साथ अपना दिन शुरू करती है। यह शोर पक्षियों, कीट-पतंगों, पालतू जीवों के लिए भी खतरा बना हुआ है। बुजुर्गो, बीमार लोगों और बच्चों के लिए यह असहनीय शोर बड़ा संकट बनकर उभरा है। सारी रात तकरीर, जागरण या फिर शादी, जन्मदिवस के दौरान लाउडस्पीकर-डीजे की तेज आवाज कई लोगों के लिए जानलेवा बन चुकी है। दुखद तो यह है कि अब यह बेकाबू रोग पूरी तरह निरंकुश हो चुका है। सनद रहे कि देशभर में 21 लाख से ज्यादा गैरकानूनी धार्मिक स्थलों का आंकड़ा सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया गया है। इन सभी पूजा स्थलों के लिए जमीन कब्जा करने और लोगों को बरगलाने में लाउडस्पीकर बड़ा हथियार हैं।
ऐसा नहीं है कि इसके खिलाफ नियम-कानून नहीं हैं, लेकिन कमी है कि उनका पालन कौन करवाए? 80 डेसीबल से ज्यादा आवाज न करने, रात दस बजे से सुबह छह बजे तक ध्वनि विस्तारक यंत्र का इस्तेमाल किसी भी हालत में न करने, धार्मिक स्थलों पर आठ फीट से ज्यादा ऊंचाई पर लाउडस्पीकर न लगाने, अस्पतालों-शैक्षिक संस्थाओं, अदालतों और पूजा स्थलों के 100 मीटर के आसपास दिन हो या रात लाउडस्पीकर का इस्तेमाल न करने, बगैर पूर्वानुमति के पीए (पब्लिक एड्रेस) सिस्टम का इस्तेमाल न करने जैसे ढेर सारे नियम तथा उच्च अदालतों के आदेश सरकारी किताबों में दर्ज हैं, लेकिन गली-मुहल्ले के धार्मिक स्थलों में आए दिन आरती, तकरीर, प्रवचन, नमाज के नाम पर पूरी रात आम लोगों को तंग करने पर कोई रोक-टोक नहीं है। तेज ध्वनि के कारण झगड़े होना महज धार्मिक प्रयोजन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आए दिन शादी-विवाह में डीजे का इस्तेमाल करने, उस पर पसंदीदा गाना चलाने, उसकी आवाज कम-ज्यादा करने को लेकर पारिवारिक आयोजन भी खूनी संघर्ष में बदल जाते हैं। समाज में संकट का बीज बोने वाले डीजे पर कहने को तो पूरी तरह रोक लगी है, पर इसकी परवाह किसी को नहीं है। अब तो धार्मिक जुलूसों में छोटे ट्रकों पर डीजे की गूंजती आवाज दूसरों को भड़काने का भी काम करती दिखती है।
यह बात सभी स्वीकारते हैं कि दंगे देश और समाज के दुश्मन हैं। यह भी सभी मानते हैं कि हल्ला-गुल्ला या तेज आवाज में पूजा-अर्चना करने से भगवान न तो खुश होते हैं और न ही इससे धार्मिकता या परंपरा का कुछ लेना-देना है। यह भी सर्वसम्मत है कि यह सब गैरकानूनी एवं अवैध है। इसे कड़ाई से रोकने का सशक्त मार्ग उत्तर प्रदेश ने दिखाया है। इसका अनुसरण सभी राज्य करें तो देश की सुख-शांति के लिए बड़ा कदम होगा।