देहरादून कोरोना संक्रमण के कारण सरकार को लगातार दूसरे वर्ष भी कांवड़ यात्रा स्थगित करनी पड़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जगह-जगह एकत्र हो रही भीड़ को देखते हुए की गई अपील और विभिन्न संगठनों, बुद्धिजीवियों व जनता की राय राज्य सरकार के कांवड़ यात्रा को स्थगित करने के निर्णय का आधार बनी। अब सरकार के सामने मुख्य चुनौती कांवड़ यात्रा की अवधि के दौरान दूसरे राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं को रोकने की है। अगर पड़ोसी राज्यों ने कांवड़ यात्रा पर रोक न लगाई तो उत्तराखंड सरकार के समक्ष खासी परेशानी खड़ी हो सकती है। इस कारण अब सरकार व शासन की नजर अन्य राज्यों के रुख पर टिकी हुई है।
प्रदेश में चारधाम यात्रा को लेकर हाईकोर्ट के सख्त रुख के बाद से ही कांवड़ यात्रा को लेकर संशय था। कारण यह कि सरकार ने चारधाम यात्रा केवल तीन जिलों के स्थानीय निवासियों के लिए सीमित संख्या में शुरू करने का निर्णय लिया था। इस पर हाईकोर्ट ने सख्य टिप्पणी करते हुए सरकार के निर्णय पर रोक लगा दी थी। हालांकि सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई है। यही कारण रहा कि पूर्ववर्ती तीरथ सिंह रावत सरकार ने गत 30 जून को कांवड़ यात्रा स्थगित करने का निर्णय लिया था।
नेतृत्व परिवर्तन के बाद नई सरकार के सामने असमंजस की स्थिति तब पैदा हुई, जब उत्तर प्रदेश और हरियाणा ने कांवड़ यात्रा शुरू करने की बात कही। इसका सीधा असर उत्तराखंड पर पड़ना तय था। दरअसल, कांवड़ यात्रा में विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु गंगाजल लेने हरिद्वार आते हैं। इनकी संख्या कुछ लाख नहीं, बल्कि दो से ढाई करोड़ के आसपास होती है। इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को प्रदेश की सीमा पर रोक पाना सरकार के बस में नहीं है।
कारण यह कि हर साल कांवड़ यात्रा के दौरान प्रदेश सरकार अन्य राज्यों से भी पुलिस के जवानों को बुलाती है। ऐसे में यदि लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन सीमा में आते तो इनकी आरटीपीसीआर अथवा एंटीजन जांच, मास्क और शारीरिक दूरी की अनिवार्यता का अनुपालन कराना संभव नहीं था। उन्हें रोकने की स्थिति में टकराव के हालात बन सकते थे।
हालांकि, यात्रा स्थगित होने के बावजूद यह चुनौती अभी भी प्रदेश सरकार के सामने यथावत है। यह बात सरकार भी समझ रही है। इसीलिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सचिव गृह और महानिदेशक पुलिस को पड़ोसी राज्यों के अधिकारियों से समन्वय स्थापित कर प्रभावी कार्यवाही का अनुरोध करने को कहा है।